ज्योतिष

Baba Khatu Shyam Ji Story: जाने कौन है शीश दानी खाटू श्याम जी, क्यों कहा जाता है उन्हें कलयुग का अवतार

सीकर, Baba Khatu Shyam Ji Story :- खाटू के बाबा श्याम की महिमा को कौन नहीं जानता. बाबा श्याम को कलयुग का अवतार कहा जाता है. हर साल लाखों की संख्या में भक्त बाबा श्याम के दरबार पर पहुंचते हैं और उन्हें पूरा विश्वास है कि बाबा उनकी जरूर सुनेंगे. बाबा श्याम किसी भी भक्त की प्रार्थना का लाख गुना करके देते हैं इसीलिए उन्हें लखदातार भी कहा जाता है. जो चारों तरफ से अंधेरे से घिरा होता है वह बाबा श्याम का सहारा लेता है इसीलिए बाबा श्याम को हर का सहारा भी कहा जाता है.

Join WhatsApp Group Join Now
Join Telegram Group Join Now

baba shyam mandir

बाबा श्याम के हैं अनेकों नाम

बाबा श्याम के अनेकों नाम है. बाबा को तीन बाण धारी, हारे का सहारा, नीले घोड़े वाला, लखदातार, शीश का दानी व अन्य कई नाम से पुकारा जाता है. पर क्या आपको विश्व प्रसिद्ध खाटू में बने श्याम जी के मंदिर के बारे में पता है. आइये इस बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं. महाभारत काल के भीम के पुत्र घटोत्कच थे और बर्बरीक उनके पुत्र थे. बर्बरीक देवी मां के भक्त थे. बर्बरीक की तपस्या व भक्ति से ख़ुश होकर देवी मां ने उन्हें तीन तीर दिए थे जिनमें से एक तीर से वे पूरी पृथ्वी मिटा सकते थे. ऐसे में जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक ने अपनी माता हिडिम्बा से युद्ध लड़ने के बारे में कहा.

श्री कृष्ण ने दान में मांगा शीश 

तब हिडिंबा ने कहा कि तुम हारने वाले के पक्ष से लड़ोगे. इसके बाद माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक महाभारत के युद्ध में शामिल होने के लिए निकल पड़े. लेकिन, श्री कृष्ण को पता था कि जीत पांडवों की होने वाली है यदि बर्बरीक युद्ध स्थल पर पहुंचते हैं तो वे कौरव पक्ष में युद्ध लड़ेंगे इसलिए भगवान श्री कृष्णा ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक के पास आए और भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में माँगा. दानशीलता की वजह से बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान दिया. इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि तुम कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे, तुम्हें कलयुग में श्याम के नाम से पूजा जाएगा.

श्री कृष्ण ने गर्भवती नदी में बहा दिया बर्बरीक का शीश

श्री कृष्ण को अपना शीश दान देकर  बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जताई तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचाई वाली जगह पर रख दिया. युद्ध खत्म होने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को गर्भवती नदी में बहा दिया. ऐसे में गर्भवती नदी से बर्बरीक यानी बाबा श्याम का शीश बहकर खाटू आ गया. स्थानीय लोगों का कहना है कि  पीपल के पेड़ के पास रोज एक गाय अपने आप दूध देती थी ऐसे में लोगों को हैरानी हुई तो उन्होंने उसे जगह खुदाई करवाई तो वहाँ बाबा श्याम का शीश निकला.

फाल्गुन मास की ग्यारस को मनाया जाता है बाबा श्याम का जन्मोत्सव

बाबा श्याम का यह शीश फाल्गुन मास की ग्यारस को मिला था इसलिए बाबा श्याम का जन्मोत्सव भी फाल्गुन मास की ग्यारस को ही मनाया जाता है. खुदाई के बाद ग्रामीणों ने बाबा श्याम का शीश चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया. इसके बाद नर्मदा देवी ने गर्भ गृह में बाबा श्याम की स्थापना की और जिस स्थान पर बाबा श्याम को खोदकर निकाला गया वहां पर श्याम कुंड बना दिया गया.

Author Deepika Bhardwaj

नमस्कार मेरा नाम दीपिका भारद्वाज है. मैं 2022 से खबरी एक्सप्रेस पर कंटेंट राइटर के रूप में काम कर रही हूं. मैंने कॉमर्स में मास्टर डिग्री की है. मेरा उद्देश्य है कि हरियाणा की प्रत्येक न्यूज़ आप लोगों तक जल्द से जल्द पहुंच जाए. मैं हमेशा प्रयास करती हूं कि खबर को सरल शब्दों में लिखूँ ताकि पाठकों को इसे समझने में कोई भी परेशानी न हो और उन्हें पूरी जानकारी प्राप्त हो. विशेषकर मैं जॉब से संबंधित खबरें आप लोगों तक पहुंचाती हूँ जिससे रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button