Chanakya Niti: इन जगहों पर कभी भी न बनाए घर, नहीं तो हस्ती जिंदगी हो जाएगी बर्बाद
नई दिल्ली, Chanakya Niti :- चाणक्य नीति में जीवन से जुड़ी व्यावहारिक बातों को विस्तार से बताया गया है। आचार्य चाणक्य की बातें आज के दौर में भी प्रासंगिक बताई जाती है। जब व्यक्ति असमंजस की स्थिति में हो तो वह चाणक्य नीति की मदद से स्पष्टता हासिल कर सकता है। आचार्य चाणक्य ने उन स्थानों के बारे में बताया है, जहां व्यक्ति को एक भी दिन नहीं रहना चाहिए। ऐसी जगह घर बनाने वाले को दुख ज्यादा मिलता है। आइये विस्तारपूर्वक जानिए Chanakya Niti में किन जगहों पर नहीं रहने को कहा गया है।
चाणक्य से जानें कहां नहीं रहना चाहिए
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत।।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जहां कोई सेठ, वेदों का पाठ करने वाला विद्वान, राजा और वैद्य न हो, जिस स्थान पर नदी न हो, वहां एक दिन भी नहीं रहना चाहिए। चाणक्य नीति में कहा गया है-
- जिस शहर या गांव में कोई धनवान व्यक्ति न हो
- जिस देश में राजा या सरकार न हो
- जिस देश में वेदों को जानने वाला विद्वान व्यक्ति न हो
- जिस शहर में कोई वैद्य यानी डॉक्टर न हो
- जिस जगह के पास कोई नदी न बहती हो या पानी का स्रोत न हो
इन पांच जगहों पर रहने का कोई फायदा नहीं है। क्योंकि सुखी जीवन के लिए इन सभी की जरूरत होती है और आपातकाल में व्यक्ति को इन्हीं का सहारा होता है। आर्थिक संकट के समय धनवान व्यक्ति से ही मदद मांगी जा सकती है। कर्मकांड के लिए विद्वान पुरोहित की जरूरत होती है। शांत और व्यवस्थित राज्य के लिए कुशल राजा या सरकार की आवश्यकता होती है। इसी तरह बीमार होने पर डॉक्टर और जल आपूर्ति के लिए नदी या पानी के स्रोत की जरूरत होती है।
जहां आजीविका न हो, वहां नहीं रहना चाहिए
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम्।।
चाणक्य नीति में कहा गया है, जहां आजीविका न हो, लोगों में भय, लज्जा, उदारता और दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी जगह नहीं रहना चाहिए। आचार्य चाणक्य किन जगहों पर निवास स्थान नहीं बनाना चाहिए, इसे लेकर विस्तारपूर्वक बताते हैं-
- जिन जगहों पर रोजी-रोटी या आजीविका से जुड़ा कोई साधन न हो या व्यापार के अनुकूल हालात न हों
- जिन स्थानों पर लोकलाज या किसी तरह का भय न हो
- जिन जगहों पर परोपकार या त्याग की भावना वाले लोग न रहते हों
- जिन जगहों पर कानून और समाज का भय न हो
- और जिन स्थानों पर लोग दान देना नहीं जानते हों
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इन स्थानों पर रहने से व्यक्ति को सम्मान नहीं मिलता है इसलिए यहां रहना उसके लिए कठिन होता है। किसी भी व्यक्ति अपने आवास के लिए ऐसा स्थान चुनना चाहिए जहां वह अपने परिवार के साथ सांसारिक साधनों का भोग कर सके और व्यावहारिक जीवन व्यतीत कर सके।