Cheque Bounce Rule: चेक बाउंस को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अब अमल में लाई जाएगी कुर्की की प्रक्रिया
नई दिल्ली :- कुछ लोग आज भी चैक से भुगतान करते हैं, खासकर डिजिटल भुगतान की आज की दुनिया में। चैक से भुगतान करते समय चेक बाउंस सबसे बड़ी चुनौती है। चेक बाउंस होने पर भी कानून लागू होता है। इससे भी आए दिन कोर्ट में चेक बाउंस (cheque bounce) के कई मामले सामने आ रहे हैं। चेक बाउंस के एक मामले में हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। इससे देश भर की जनता प्रभावित हुई है। चेक बाउंस के बारे में खबर में जानें।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि कंपनी दिवालिया होने के बाद भी उसके डायरेक्टर को अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भागना चाहिए. कोर्ट ने उन्हें इस विषय में कोई आदेश भी नहीं दिया है। कोर्ट ने चेक बाउंस मामले में कंपनी के डायरेक्टर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मुकदमे के ट्रायल से ही एक व्यक्ति जो कंपनी (Company Bankrupt in India) का निदेशक और सभी मामलों का प्रभारी है, उसके कार्यों की समीक्षा संभव है। इसके अलावा, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को हर दिन सुनवाई करने और तीन महीने में सुनवाई पूरी करने का भी आदेश दिया है।
पूरी बात जानें
वालेचा इंजीनियरिंग कंपनी के निदेशक दिनेश हरिराम वालेचा की याचिका को न्यायमूर्ति ने खारिज कर दिया। Velachea ने याचिका दाखिल करते हुए स्पेशल सीजेएम इटावा की अदालत में चल रहे चेक बाउंस के विवाद में HC निर्णय का विरोध किया। इसके अलावा, कार्यवाही को रद्द करने की मांग भी की गई थी।
विरोधी पक्ष ने भुगतान नहीं किया
मामले में, वालेचा इंजीनियरिंग कंपनी ने विपक्षी को कुछ काम देने का अनुबंध दिया था। इस ठेके के एवज में कंपनी ने उसे सात करोड़ 16 लाख 65 हजार रुपये से भी अधिक भुगतान किया था। कम्पनी ने विपक्षी को चेक से 6.50 करोड़ रुपये का भुगतान किया, लेकिन चेक बाउंस हो गया। विपक्षी कंपनी ने याचिका दर्ज की और नोटिस दिया, लेकिन कंपनी (Company Bankrupt ke baad Rules) ने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया और इस रकम का कोई भुगतान नहीं किया। विपक्षी ने इसके बाद चेक बाउंस की शिकायत की।
कुर्की की प्रक्रिया भी शुरू हो गई-
परिवाद के दाखिल होने के बाद, अदालत ने कई बार याची की कंपनी के निदेशकों को सम्मन और गैर जमानती वारंट जारी किए। न ही विपक्ष अदालत में हाजिरी लगाया। यहां तक कि निदेशकों की कुर्की भी शुरू हो गई थी। बाद में कुछ निदेशकों ने अदालत में उपस्थित होकर जमानत भी ली। लेकिन बाद में फिर नहीं आए। वे लगातार हाजिरी माफी की मांग करते थे और उपस्थित होने से बचते थे। विपक्षी कंपनी ने हाईकोर्ट को छह महीने में मुकदमे का ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया।
याची ने बताया कि
याची ने फिर अपनी दलील दी और कहा कि विपक्षी के नोटिस (cheque bounce news) में तारीख का कोई जिक्र नहीं था और निदेशक की कोई भूमिका नहीं बताई गई थी। चेक जारी किए जाने के दौराना, निदेशक ने कंपनी के एक कर्मचारी को अटॉर्नी अधिकार दे दिया था। निदेशक इसमें शामिल नहीं है। साथ ही, निदेशक ने बताया कि कंपनी दिवालिया हो चुकी है और इस पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में मुकदमा चल रहा है।
कंपनी बंद होने पर ये नियम लागू होंगे:
इस मामले में, ट्रायल कोर्ट (SC decision on cheque bounce) ने कहा कि 9 सितंबर 2020 को मुकदमे का ट्रायल छह महीने में पूरा करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन हाईकोर्ट (HC news) के निर्देशों का पालन नहीं किया गया है और ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बड़ी सहूलियत से ही तारीखें दी हैं। इसके अलावा, सभी निदेशकों को उपस्थित होने से छूट दी गई है। यह निर्णय ट्रायल कोर्ट का वास्तव में अपमानजनक साबित हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि याची और अन्य निदेशक मुकदमे का ट्रायल टालने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। यदि कंपनी दिवालिया हो जाती है, तो निदेशक भी जवाबदेह हैं।