किसानों की हो गई पौ बारह पच्चीस, MSP से ज्यादा दाम पर हो रही है गेहूं की बिक्री
नई दिल्ली :- भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में गेहूं (Wheat) एक अहम फसल है खासकर उत्तर भारत के राज्यों में यह रबी सीजन की मुख्य उपज मानी जाती है। हर साल अप्रैल-मई के महीने में किसान अपनी मेहनत से उगाई गई गेहूं की फसल को मंडियों और सरकारी क्रय केंद्रों (Procurement Centres) पर बेचते हैं। सरकार हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित करती है ताकि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सके। लेकिन इस बार हालात कुछ अलग दिख रहे हैं। जिले में सरकार द्वारा स्थापित 26 क्रय केंद्रों पर गेहूं की खरीद बेहद धीमी चल रही है।
गेहूं खरीद की धीमी रफ्तार
रवि विपणन वर्ष 2025-26 में गेहूं की खरीद को लेकर सरकारी योजनाएं तो बनीं लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। जिले में 26 सरकारी क्रय केंद्रों की स्थापना की गई जिनका मकसद किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम देने और उन्हें स्थानीय स्तर पर बेचने की सुविधा देने का था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन 26 केंद्रों पर पिछले 20 दिनों में सिर्फ 30 कुंतल गेहूं की ही खरीद हो पाई है। यह आंकड़ा सरकारी उम्मीदों से बहुत नीचे है। ऐसा नहीं है कि किसान गेहूं नहीं उगा रहे बल्कि वे अपनी फसल को बेचने के लिए दूसरे विकल्प चुन रहे हैं।
क्यों घट रही है सरकारी खरीद?
इस मंदी के पीछे कई वजहें हैं। सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि सरकारी खरीद प्रक्रिया बेहद जटिल (Complex) और समय लेने वाली है। किसानों को ऑनलाइन पंजीकरण (Online Registration) स्लॉट बुकिंग (Slot Booking) लोडिंग-अनलोडिंग और भुगतान प्रक्रिया में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। दूसरी तरफ मंडियों और व्यापारियों से सीधे डील करना आसान और फायदेमंद है। बाजार में इस समय गेहूं की कीमत लगभग 2420-2450 रुपये प्रति कुंतल के आसपास बनी हुई है जो सरकार के निर्धारित MSP – ₹2425/कुंतल के बराबर ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि प्राइवेट व्यापारी कैश में पेमेंट (Cash Payment) दे रहे हैं वो भी फटाफट।
किसानों की सोच बदल रही है
आज का किसान ज्यादा जागरूक हो चुका है। वह अब सरकारी नियम-कायदे की लाठी खाने के मूड में नहीं है। किसान कहते हैं “जब बाजार में उतने ही रेट मिल रहे हैं वो भी हाथों-हाथ कैश में तो हम क्यों सरकारी खरीद केंद्रों के चक्कर लगाएं?” कई किसानों का कहना है कि उन्होंने पिछले साल सरकारी केंद्रों पर गेहूं बेचा था लेकिन पेमेंट के लिए 15 से 20 दिन इंतजार करना पड़ा। वहीं व्यापारी एकदम मौके पर कैश दे देते हैं। इसी वजह से किसान प्राइवेट मंडियों का रुख कर रहे हैं।
केंद्रों की स्थिति
जिले में कुल 26 केंद्र बनाए गए हैं जिनमें जेवर दनकौर और दादरी जैसे इलाकों में क्रय केंद्र स्थापित किए गए हैं। इनका उद्देश्य किसानों को उनके नजदीक ही फसल बेचने की सुविधा देना था। लेकिन जब सुविधा की जगह पेचिदगियां मिलेंगी तो किसान भला क्यों आएंगे इन केंद्रों में से कई पर तो पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहता है। मजदूर और कर्मचारी खाली बैठकर चाय की चुस्कियों में दिन काट रहे हैं। वहीं कुछ केंद्रों पर रजिस्ट्रेशन तो हुआ है लेकिन किसान अपनी उपज लेकर नहीं पहुंचे।