महिलाएं नागा साध्वी बनना नहीं है आसान, पीरियड्स के वक्त अपनाती हैं गंगा स्नान का ये अनोखा तरीका
प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर शाही स्नान का आगाज हो चुका है। इस पावन स्नान में 13 अखाड़ों के नागा साधु और साध्वियां शामिल हुईं। लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच, नागा साध्वियों का रहस्यमयी जीवन और उनकी साधना की कठिन यात्रा एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया कितनी कठिन और आश्चर्यजनक होती है?
कितनी कठिन है नागा साध्वी बनने की राह
महिला नागा साधु बनने के लिए न केवल कठिन तपस्या करनी पड़ती है, बल्कि उन्हें 10 से 15 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नागा साधु बनने से पहले महिला को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करना पड़ता है। यह प्रक्रिया उनके पुराने जीवन को त्यागने और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। इसके बाद उनका मुंडन किया जाता है और नदी में स्नान करवाया जाता है, जिससे वे आध्यात्मिक रूप से पुनर्जन्म पाती हैं।
पुरुष नागा साधुओं की तरह ही, महिला नागा साध्वी भी भगवान शिव की पूजा करती हैं। उनका जीवन कठिन साधनाओं और ब्रह्मचर्य के नियमों से बंधा होता है। उनके भोजन में केवल कंदमूल, फल, जड़ी-बूटियां और पत्ते शामिल होते हैं। वे दिगंबर नहीं होतीं, बल्कि केसरिया वस्त्र धारण करती हैं, जो सिले हुए नहीं होते।
मासिक धर्म के दौरान साध्वी क्या करती हैं?
महाकुंभ में मासिक धर्म के दौरान महिला साध्वियां गंगा स्नान नहीं करतीं। इसके बजाय, वे गंगा जल का आचमन और छींटे अपने ऊपर छिड़कती हैं, जिससे इसे स्नान के समान पवित्र माना जाता है। नागा साध्वी बनने के लिए केवल साधना ही नहीं, बल्कि अपने गुरु का विश्वास जीतना भी अनिवार्य है। उनकी साधना में सुबह ब्रह्म मुहूर्त में शिव का जाप और शाम को भगवान दत्तात्रेय की आराधना शामिल होती है। वे समाज से पूरी तरह अलग रहती हैं, और कुंभ जैसे आयोजनों में ही दुनिया को उनके रहस्यमयी जीवन की झलक मिलती है।