Jhajjar News: राख के ढेरों पर बसा है हरियाणा का ये गांव, तालाब में नहाने से पीलिया ठीक होने की भी मान्यता
बहादुरगढ़ :- बहादुरगढ़-बेरी मार्ग पर बसा गांव छारा राजनीतिक और सामाजिक रूप से कई ऐतिहासिक तथ्यों के लिए जाना जाता है. यहां खुदाई में राख के ढेर निकले है. संस्कृत में क्षार शब्द का मतलब राख होता है क्षार को स्थानीय भाषा में छार कहते थे, इसीलिए इसका नाम छारा पड़ा. इसी गांव का पीलिया जोहड़ भी काफ़ी Famous है. इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां के निवासियों ने कभी अन्याय और अत्याचार सहन नहीं किया. मुगल शासन में जब इस गांव से लगान वसली के लिए तत्कालीन नवाब के सैनिक आए तो लोगों ने उन्हें भगा दिया.
पीलिया से छुटकारा पाने स्नान करने के लिए पहुंचते हैं लोग
छारा गांव की निकासी बहादुरगढ़ के प्रमुख गांव मांडौठी से है. यह गांव कब बसा, इसके बारे में तो यहां किसी को ठीक-ठीक से पता नहीं , पर मांडौठी और छारा ये दोनों ही गांव जोनपाल द्वारा बसाए गए थे. दोनों गांवों के बीच दो-तीन गांव और भी हैं, पर इन दोनों गांवों में भाईचारा है. आसपास के Area में देखें तो यहां सबसे ज्यादा Voter हैं. इस गांव में ऐसा तालाब भी है, जिसमें स्नान करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है. पास में श्रवण कुमार का मंदिर भी है. दशकों से यहां पर लोग पीलिया से निजात पाने स्नान करने आते हैं.
गांव ने दिए हैं कई नामी पहलवान
गांव में आते ही तालाब वाले रास्ते पर लगा दिशा सूचक बोर्ड इसकी विशेषता अपने आप बता देता है. पहले विश्व युद्ध के दौरान भी इस गांव सक्रिय भागीदारी थी. यहां से 306 सैनिकों ने युद्ध में भाग लिया था और 24 ने कुर्बानी दी. यहां के पहलवान भी काफ़ी मशहूर है जिनमें सुधन और सुंडू पहलवान प्रमुख है. हिंदी आंदोलन में इस गांव की विशेष भूमिका रही थी. इस गांव ने अनेक सैनिक और शिक्षक भी दिए है.
गांव में आज भी है कई पुरानी हवेलियां
राजनीतिक हस्ती संत हरद्वारी लाल का जन्म भी इसी गांव में हुआ था. गांव में लगी उनकी आदमकद मूर्ति दशकों पहले के राजनीतिक हालातों की याद दिलाती है. गांव में आज भी पुरानी हवेलियां हैं, जो लगभग 100 साल पहले की वास्तु और निर्माण कला का बखान करती है. गांव के बालकिशन भारद्वाज और वीरेंद्र आर्य कहते हैं कि यहां पर कई दानवीर भी हुए हैं, जिन्होंने मंदिर, कुओं और धर्मशालाओं को बनवाया है.