चंडीगढ़ :- इंसान के जीवन में कई परेशानिया आती है, अगर आज इन परेशानियों से हार मानकर बैठ गए तो जीवन में कभी भी अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाओगे. वहीं अगर इन परेशानियों को चिरते हुए आगे बढ़ते हो तो एक दिन सारी दुनिया तुम्हारे आगे जी हजूरी करेगी. परिस्थितिया चाहे जैसी भी हो इंसान को हार नहीं माननी चाहिए. एथलेटिक प्राथना भाटिया ने एक ऐसा ही उदाहरण पेश किया. आइए प्रार्थना भाटिया से जुड़ी कहानी के बारे में जानते हैं.
कई बार गुजरना पड़ा बुरे दौर से
जब भी Sport से जुड़ी कोई बात आती है तो खिलाड़ियों के अंदर हौसला और उसे कर गुजरने का जुनून होना चाहिए. प्रार्थना की मां ने जानकारी देते हुए बताया कि 5 वर्ष की Age तक प्रार्थना को मां तक नहीं बोलना आता था. 5 वर्ष की उम्र तक वह ना तो सही से बोल पाती थी और ना ही सुन पाती थी. उन्होंने बताया कि प्रार्थना को कई बार बुरे दौर से गुजरना पड़ा. उनकी बेटी का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा है. उन्होंने अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए योगा क्लास से लेकर Dance क्लास तक लगवाई. साथ ही उसकी Study पर भी खास ध्यान दिया.
स्विमिंग में था बचपन से इंटरेस्ट
प्रार्थना की मां ने बताया कि प्रार्थना का मानसिक विकास सही से न होने के कारण उसका PGI में इलाज करवाया जा रहा था. उन्होंने कहा कि भले ही प्रार्थना के दिमाग का विकास थोड़ा Late हुआ है, परंतु वह 1 साल की उम्र में ही स्विमिंग करना सिख गई थी. 1 साल की उम्र से ही वह अपने पिता के साथ स्विमिंग के लिए जाती थी. धीरे- धीरे Swimming करना प्राथना की आदत बन गई. उन्होंने बेटी के बड़े होने के बाद स्पेशल गेम्स के लिए Coach शीतल नेगी से संपर्क किया और प्रार्थना की ट्रेनिंग की शुरुआत करवाई गई.
देश का नाम किया रोशन
प्रार्थना ने जर्मनी में हुए स्पेशल Summer ओलंपिक के दौरान स्विमिंग में देश के लिए सिल्वर Medal जीता. अपनी मां के सहयोग से प्राथना पैराएथलेटिक्स में मैडल जीत पाई. प्रार्थना की इस जीत के लिए लोगो ने उन्हें ढ़ेर सारी बधाईया दी. पैराएथलेटिक्स में Silver मेडल हासिल कर प्रार्थना ने न केवल अपने परिवार का बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया. अब प्रार्थना का सपना है कि वह देश को Gold मेडल भी दिलवाए.