पुश्तैनी संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, मालिकाना हक को लेकर हटाया भ्रम
नई दिल्ली :- जमीन और संपत्ति को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है, खासकर जब बात पुश्तैनी ज़मीन और घर की हो। इन मामलों में अक्सर सालों तक कानूनी लड़ाई चलती रहती है। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जो पुश्तैनी संपत्ति से जुड़े मालिकाना हक को लेकर स्पष्टता लाता है।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट रुख
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति का नाम रेवेन्यू रिकॉर्ड (दाखिल-खारिज या जमाबंदी) में दर्ज है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्ति उस संपत्ति का कानूनी मालिक है। यह केवल वित्तीय और प्रशासनिक उद्देश्य जैसे भू-राजस्व वसूली आदि के लिए होता है। ऐसे रिकॉर्ड केवल ट्रांजैक्शन या प्रशासनिक सुविधाओं के लिए होते हैं, और इनसे किसी का कानूनी स्वामित्व तय नहीं होता।
मालिकाना हक तय करेगा सिविल कोर्ट
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल सिविल कोर्ट ही यह निर्णय ले सकता है कि पुश्तैनी संपत्ति का असली हकदार कौन है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति का नाम म्यूटेशन में दर्ज नहीं है, तो इसका यह मतलब नहीं है कि उसे मालिकाना अधिकार प्राप्त नहीं हैं। लेकिन इससे जुड़े दस्तावेज़ और साक्ष्य बेहद महत्वपूर्ण हैं।
म्यूटेशन क्यों है जरूरी?
विशेषज्ञों का मानना है कि म्यूटेशन एक जरूरी प्रक्रिया है जिससे यह दर्ज होता है कि संपत्ति का स्वामित्व किसके पास है। यह कर निर्धारण, योजना निर्माण और संपत्ति विवादों के समाधान में प्रशासन को मदद करता है। हालांकि, केवल म्यूटेशन का रिकॉर्ड मालिकाना हक नहीं साबित करता। इस प्रक्रिया को समय-समय पर अपडेट करना जरूरी होता है।
आवश्यक दस्तावेज़ों की उपेक्षा पड़ सकती है भारी
यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति से संबंधित दस्तावेजों को नजरअंदाज करता है, तो भविष्य में उसे कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि म्यूटेशन रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाना जरूरी है, ताकि भविष्य में विवाद की स्थिति से बचा जा सके।