Kheti Badi: धान का ये चमत्कारी बीज किसानों के लिए बनेगा वरदान, फसल पकने में लगेंगे सिर्फ 125 दिन
नई दिल्ली, Kheti Badi :- प्रदूषण से राजधानी दिल्ली का हाल बुरा हो चुका है. इसके पीछे मुख्यतः 2 कारण हैं, पहला यहां पर दिन रात दौड़ते लाखों वाहन और दूसरा हरियाणा व पंजाब में समय-समय पर जलने वाली पराली . दिल्ली सरकार राज्य से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए समय-समय ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) जैसे कठोर कदम उठाती है. लेकिन दूसरे राज्यों से पराली जलाने से आने वाले प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का कोई बस नहीं है.
Pollution कम करने के लिए पूसा नहीं ढूंढा Solution
अब इस बड़ी समस्या का समाधान इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएआरआई-पूसा) ने ढूंढ़ लिया है. हालांकि यह सुनकर थोड़ा अचरज होगा कि पदूषण को कम करने में पूसा क्या समाधान कर सकता है मगर समाधान जानकर आप भी जमकर तरीफ करने लगेंगे. अक्सर खबरें आते हैं कि हरियाणा और पंजाब के किसानों ने पराली जला दी है जिसका असर दिल्ली में भी देखने को मिलता है. पराली जलने से दिल्ली के लोगों का सांस लेना भी दुभर हो जाता है.
खेत जल्दी खाली करने के लिए जला दी जाती है पराली
पर कभी आपने सोचा है कि किसान पराली क्यों जलाते हैं इसके पीछे क्या कारण है. पंजाब और हरियाणा में किसान चावल का जो बीज बोते हैं, उसका तना मजबूत और लंबा होता है, जो गिरता नहीं है, इस वजह से फसल कों नुकसान नहीं होता है. इसकी पैदावार 8 से 9 टन प्रति हेक्टेयर तक चली जाती है. यह फसल 155 दिन से 160 दिन के बीच की होती है. इतनी ज्यादा दिनों की होने के कारण इसके कटने के साथ ही अगली फसल बोने का समय आ जाता है.
पूसा ने खोजी धान की नई फ़सल
ऐसे में खेत खाली करने के लिए किसान फसल की पराली को जला देते हैं. चूंकि इसमें पैदावार बंपर होती है और लंबा होने के कारण से कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से इसकी कटाई की जाती है. इस वजह से किसान इसी को उगाते है. इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएआरआई-पूसा) के निदेशक डा. एके सिंह ने कहा कि दिल्ली में पराली की समस्या से राहत देने के लिए पूसा ने पूसा-2090 और पूसा 1824 धान की नई किस्म खोजी हैं. इसकी पैदावार 8.8 टन से लेकर 9.5 टन प्रति हेक्टेयर है. यह फसल 125 दिन की है. यह बौनी फसल है, लेकिन पकने के बाद गिरेगी नहीं और कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से इसकी कटाई की जा सकती है.